Tuesday, October 8, 2019

पनघट पहुंचा तो वो
देख अक्स गया सहम
सदियों की कल्पना
हुई लम्हों में ख़तम

सारे बादल छंटे
टूटे सारे भरम
झूठे निकले सभी
दिल के जो थे सनम

क्या शहर ओ  सल्तनत
क्या शमशीर ओ अलम
डूबे अश्कों में या
हुए  गिर के भसम

बचा बस इश्क़ है
बचा कुछ तो कम से कम
देगा सेहरा में फिर
नए गुलशन को जनम

 © 2019 Akshay Bhawani Singh. All Rights Reserved






न मेला था
न घर था, न मैखाना था
क्या सोच बैठे इसे यूँ ही
ये जहां तो एक वीराना था

वो बातें सुबह ए नौ की
हुस्न ओ इश्क की बातें
थीं महज़ बातें
के दिल तो बहलाना था

क्या सोच के टूटी
मौज चट्टानों पे
थक हार के उसे
वापस ही आना था

गिरते हुए पत्ते को
आवारा क्यों कहें
किसी दिल में कभी
इसका भी ठिकाना था

आंधी में दिया लेके
चले थे कभी
हँसता रहा हम पे
ज़माना था

 है बचा क्या
कहने को ऐ दिल
बुझ गयी थी शमा
जल गया परवाना था


© 2019 Akshay Bhawani Singh. All Rights Reserved

Saturday, February 23, 2019

कोई पहले कह चुका है,
के दर्द आशना है
बाकी हैं अजनबी सब,
चल देते हैं निपट के

चलता है संग हमारे ,
होता ही नहीं किनारे 
रहता है हर डगर ये,
रूह ओ जिस्म से लिपट के

सोये तो खाब देखा ,
कोई आफ़ताब देखा
फिरते हैं होश में अब,
ज़ुल्मत में भटके भटके

ग़ाफ़िल तू क्यों है हँसता ,
मेरा हाल देख खस्ता
बच जायेगी जहां में,
मेरी खाख तो सिमटके

ये देख जुगनी रोई,
सदियों का अब्र कोई
बरसा न पर्वतों पे,
बिखरा गगन में छँटके

मैं जिसका मुन्तज़िर था,
उसे आना ही नहीं था
क्यों देखता हूँ फिरसे ,
उस मौज को पलटके

ये लम्हा ए फ़ना  है,
ख़त्म होने को बना है
रहते है इस पे फिर क्यों ,
दिन रात रोज़ अटके

© 2019 Akshay Bhawani Singh. All Rights Reserved

Sunday, February 18, 2018


सागर सदियों से बूढ़े हैं
पर्वत भी बड़े पुराने हैं
प्राचीन वनों के वृक्षों नें
भी देखे कई ज़मानें हैं
राह ए कुहन लेकिन न रही...
थे चले ढूंढने हम जिसको
तारों ने भी पूछा हँसके
पूरी कैसे ये दूरी हो



वो राह ए अज़ल
जिस पे  बस कल
था लुटा कारवाँ मस्तों का
ना गम न ज़खम, ना दर्द ए सितम
क्या काम नए इन रस्तों का
हर ओर अक्ल का शोर मचा
तो  सुनें कौन आह ए दिल को
पर  बात कलंदर की सच है
हम भूल चले राह ए दिल को


सेहरा ए हकीकत में
जज़्बात सुलगते रहते हैं
इश्क़ के राही तड़पन में
दिन रात जगते रहते हैं
हैं बुलबुले  अंगारों में
चैन कहाँ हासिल इनको
दरया में भटकी मौजे हैं ये
ढूंढ रहा साहिल जिनको


अनजान डगर सुनसान सफ़र
मंज़िल है नामालूम नगर
हर ओर अंधेरों  का आलम
हर ओर बेरहमी का मंज़र
कर सकी नहीं दूरी हताश
बरसों से आशिक़ होये को
हुस्न ए बयाबां ए रुस्वा
में बेबस होके खोये को
© 2018 Akshay Bhawani Singh. All Rights Reserved

Sunday, June 7, 2009

The Wheels Will Turn

The fuel will burn
The wheels will turn
Our path will clear
We'll feel no fear
Like children play
With wet clay
We the bold
Will laugh and mold
Our destiny
For all to see

Tuesday, February 17, 2009