सागर सदियों से बूढ़े हैं
पर्वत भी बड़े पुराने हैं
प्राचीन वनों के वृक्षों नें
भी देखे कई ज़मानें हैं
राह ए कुहन लेकिन न रही...
थे चले ढूंढने हम जिसको
तारों ने भी पूछा हँसके
पूरी कैसे ये दूरी हो
थे चले ढूंढने हम जिसको
तारों ने भी पूछा हँसके
पूरी कैसे ये दूरी हो
वो राह ए अज़ल
जिस पे बस कल
था लुटा कारवाँ मस्तों का
ना गम न ज़खम, ना दर्द ए सितम
क्या काम नए इन रस्तों का
हर ओर अक्ल का शोर मचा
तो सुनें कौन आह ए दिल को
पर बात कलंदर की सच है
हम भूल चले राह ए दिल को
सेहरा ए हकीकत में
जज़्बात सुलगते रहते हैं
इश्क़ के राही तड़पन में
दिन रात जगते रहते हैं
हैं बुलबुले अंगारों में
चैन कहाँ हासिल इनको
दरया में भटकी मौजे हैं ये
ढूंढ रहा साहिल जिनको
अनजान डगर सुनसान सफ़र
मंज़िल है नामालूम नगर
हर ओर अंधेरों का आलम
हर ओर बेरहमी का मंज़र
कर सकी नहीं दूरी हताश
बरसों से आशिक़ होये को
हुस्न ए बयाबां ए रुस्वा
में बेबस होके खोये को
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